14 July 2011

*गुरु* गुरु तो एवी राह जुए छे के शिष्य पण शिष्य न रहे.एवी घडीओ आवी जाय के शिष्य पण बदलाइने गुरुना अनुभव साथे एक थइ जाय.महापुरुषो कोई पण रुपमां होय....दत्तात्रेय भगवान होय,शंकराचार्य भगवान होय,शुकदेवजी मुनि होय,जनकराजा होय,ज्ञानेश्वर महाराज होय,अखा भगत होय,संत तुकाराम होय,संत एकनाथ होय,स्वामी रामतीर्थ होय,जलाराम जोगी होय के नरसिंह महेता होय, कोइ पण नामी-अनामी ज्ञानवान होय,ब्रह्मवेत्ता होय,जेओ संसारथी पर छे ए बधा ज महापुरुषोने आपणे खुब प्यारथी पोताना ह्रदयमां स्थापित करीए, एमना ज्ञानने ह्रदयमां धारण करीए.....
॥कायेन वाचा मयनसेन्द्रियैवा बुध्यात्मना वा प्रकृते: स्वभावात्‌ । करोमि यद्‌ यद्‌ सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि॥ **शरीरथी,वाणीथी, मनथी, इन्द्रियोथी,बुद्धिथी अथवा प्रकृतिना स्वभावथी जे कंइ करीए छीए ते बधुं समर्पित करीए छीए..अमारां जे कंइ कर्म छे, हे गुरुदेव! ए बधां आपना चरणोमां समर्पित छे...अमारो कर्तापणानो भाव,अमारो भोक्तापणानो भाव आपना चरणोमां समर्पित छे..